छत्तीसगढ

High Court : नगर निगम के पूर्व आयुक्त को हाईकोर्ट से मिली बड़ी राहत

बिलासपुर, , 03 अप्रैल। High Court : उच्च न्यायालय ने दुर्ग नगर निगम के पूर्व आयुक्त सुनील अग्रहरि एवं अन्य दो की याचिका पर सुनवाई करते हुए निचली अदालत के फैसले और दर्ज की गई एफआईआर पर रोक लगाने का आदेश दिया है। अधिवक्ता राजेश केशरवानी व प्रकाश तिवारी ने बताया कि दुर्ग के मेहरबान सिंह ने धारा 156 (3) के तहत मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के न्यायालय में परिवाद पत्र प्रस्तुत कर तत्कालीन नगर निगम आयुक्त अग्रहरि, राजस्व निरीक्षक चंद्रकांत शर्मा, सहायक राजस्व निरीक्षक पवन नायक एवं ठेकेदार अनिल सिंह पर भारतीय दंड विधान की धारा 420, 467, 468, 471, 120 बी और 34 के तहत अपराध पंजीबद्ध करने की मांग की थी । उक्त परिवाद पर दुर्ग के प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट ने 10 अगस्त 2022 को थाना प्रभारी थाना सिटी कोतवाली को निर्देशित किया कि परिवाद में वर्णित तथ्यों एवं प्रस्तुत दस्तावेजों पर संक्षिप्त प्रारंभिक जांच करें और जांच में कोई संज्ञेय अपराध पाया जाए तो संबंधितों के विरुद्ध अपराध पंजीबद्ध कर विधि अनुसार अन्वेषण की कार्रवाई करे। इस आदेश पर थाना पद्नाभपुर चौकी द्वारा बिना प्रारंभिक जांच एवं अन्वेषण के अग्रहरि सहित अन्य 3 के विरुद्ध 20 मार्च 23 को अपराध पंजीबद्ध कर न्यायालय को सूचना दी।

उल्लेखनीय है कि यह मामला वर्ष 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में मतदाता जागरूकता कार्यक्रम के लिए नगर निगम की ओर से विभिन्न स्थानों पर लगाए गए फ्लैक्स कार्य के भुगतान का है। तत्कालीन निगम आयुक्त अग्रहरि की पदस्थापना दुर्ग में 18 फरवरी 2019 को हुई और 10 मार्च 2019 को आचार संहिता लागू हो गई। दुर्ग में 23 अप्रैल को होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए जिला निर्वाचन अधिकारी ने 22 मार्च को निगम आयुक्त को ज्ञापन प्रेषित कर मतदाता जागरूकता कार्यक्रम के लिए शहर के विभिन्न स्थानों पर विज्ञापन, होर्डिंग और फ्लेक्स लगाने तथा निगम के वाहनों से प्रचार-प्रसार कर मतदाता जागरूकता कार्यक्रम करने का निर्देश दिया। इसके परिपालन में नगर निगम ने भंडार क्रय नियम के प्रावधानों के अनुसार एक लाख से कम राशि के कार्य के लिए प्रतिष्ठित आपूर्तिकर्ताओं से कोटेशन प्राप्त कर उपरोक्त कार्य कराया गया और संबंधित फर्म को जीएसटी सहित 8 लाख 65 हजार 476 रुपये का भुगतान किया गया। उपरोक्त कार्यो का पालन प्रतिवेदन फोटोग्राफ सहित जिला निर्वाचन अधिकारी को नगर निगम ने प्रेषित भी किया।

अधिवक्ता राजेश केशरवानी ने हाईकोर्ट में कहा कि शिकायत पर तत्कालीन निगम आयुक्त इंद्रजीत बर्मन ने जांच प्रारंभ की और अग्रहरि को बयान के लिए नोटिस जारी किया, जबकि एक अधिकारी द्वारा अपने समकक्ष अधिकारी के विरुद्ध जांच नहीं की जा सकती। अग्रहरि ने उक्त नोटिस के आधार पर 31 दिसंबर 2019 को आयुक्त को पत्र प्रेषित कर सक्षम प्राधिकारी के विभागीय जांच आदेश एवं शिकायत की छाया प्रति की मांग की किंतु उन्हें उपलब्ध नहीं कराया गया। तत्कालीन आयुक्त बर्मन ने पूरी राशि का गबन माना जबकि किए कार्य का प्रतिवेदन, फोटोग्राफ्स एवं समाचार पत्र की कतरन जिला निर्वाचन अधिकारी को प्रेषित किया गया था। आदर्श आचार संहिता के दौरान नई निविदाएं प्रतिबंधित होती है और चुनाव आयोग के निर्देश पर बाजार मूल्य के आधार पर निर्वाचन कार्य कराने की छूट रहती है लेकिन आयुक्त बर्मन ने विभागीय प्रक्रिया को कूटरचना बताया। उपयोग किया गया फ्लेक्स प्रतिबंधित था अथवा नहीं यह भी पंचनामा में नहीं पाया गया। मेहरबान सिंह के परिवाद पर दुर्ग के प्रथम श्रेणी सीजेएम उमेश कुमार उपाध्याय ने 10 मार्च 2023 को थाना प्रभारी पद्नाभपुर को ज्ञापन प्रेषित कर 10 अगस्त 2022 के आदेश के अनुपालन में की गई कार्रवाई से 20 मार्च 23 तक सूचित करने और कार्रवाई से न्यायालय को अवगत कराने का निर्देश दियाl उक्त निर्देश के परिपालन में थाना प्रभारी ने परिवाद में वर्णित तथ्यों एवं प्रस्तुत दस्तावेजों पर बिना प्रारंभिक जांच के सीधे एफआईआर दर्ज किया। इस पर याचिकाकर्ता तत्कालीन आयुक्त अग्रहरि एवं अन्य 2 ने माननीय उच्च न्यायालय की शरण ली।

याचिकाकर्ता के अधिवक्ताओं ने उच्च न्यायालय में दलील दी कि सर्वोच्च न्यायालय ने प्रियंका श्रीवास्तव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2015) 6 एससीसी 287 का उल्लेख करते हुए बताया कि प्रतिवादी मेहरबान सिंह ने सीआरपीसी की धारा 154 (1) के तहत आवश्यक कार्रवाई नहीं की है और इसलिए मजिस्ट्रेट को आवेदन की अनुमति नहीं देनी चाहिए थी। कोर्ट ने प्रशांत वशिष्ठ बनाम के मामले में इस न्यायालय की खंडपीठ के फैसले पर भी भरोसा किया। छत्तीसगढ़ राज्य ने 2023 के मुकदमे (छ.) 99 में रिपोर्ट दी। उन्होंने आगे तर्क दिया कि प्रतिवादी ने एफआईआर दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच करने के मजिस्ट्रेट के निर्देश का भी पालन नहीं किया। प्राथमिकी में यह उल्लेख नहीं है कि प्रारंभिक जांच के परिणाम के आधार पर प्राथमिकी दर्ज की जा रही है। जस्टिस पार्थ प्रीतम साहू ने याचिकाकर्ता के वकील की प्रस्तुति और मजिस्ट्रेट उमेश उपाध्याय के पारित आदेश 10 अगस्त 2022 पर विशुद्ध रूप से एक अंतरिम उपाय के रूप में यह निर्देश दिया कि एफआईआर संख्या 35/2023 के अनुसार आगे की कार्रवाई दर्ज की जाए। अगली सुनवाई तक पुलिस कार्रवाई पर रोक रहेगी। इस मामले को एक मई से शुरू होने वाले सप्ताह में सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया गया है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button