पंजाब के किसान संगठनों ने गुरुवार से एक बार फिर रेलवे का चक्का जाम करने और शंभू बॉर्डर पर धरने का ऐलान कर दिया है।
किसान नेता सलविंदर सिंह ने कहा कि शंभू बॉर्डर पर संयुक्त रूप से दिए गए धरने को लगभग चार महीने बीत चुके हैं, लेकिन अब तक सरकार ने हमारी मांगों को नहीं माना है।
अब भी शंभू और खनौरी बॉर्डर पर फरवरी से ही कुछ किसान जमे बैठे हैं। इस तरह पंजाब में किसान आंदोलन फिर से जोड़ पकड़ रहा है।
यही नहीं चुनावी राज्य हरियाणा में भी किसान संगठन सक्रिय होने वाले हैं। किसान संगठन से जुड़े सूत्रों ने बताया कि चुनाव से पहले पूरे हरियाणा में ही यात्रा निकालने की तैयारी है।
इन यात्राओं में किसानों को उनके मुद्दों के प्रति जागरूक किया जाएगा। इसके अलावा सबसे अहम मांग एमएसपी की कानूनी गारंटी की है, जिस पर किसानों से समर्थन की मांग की जाएगी।
जुलाई के महीने में यह यात्रा निकालने की तैयारी है, जबकि अक्टूबर में ही राज्य में चुनाव का ऐलान होना है। किसान संगठनों का कहना है कि यह सबसे सही समय है, जब हरियाणा में चुनाव होने हैं।
ऐसे में आंदोलन छेड़ कर राज्य और केंद्र की भाजपा सरकारों पर दबाव बनाया जा सकता है। बता दें कि शंभू और खनौरी बॉर्डर पर जमे किसानों को रोकने के लिए हरियाणा सरकार ने बैरियर भी लगा रखे हैं ताकि ये लोग दिल्ली तक न बढ़ सकें।
क्यों हरियाणा के लोकसभा नतीजों से खुश किसान संगठन
लोकसभा चुनाव में भाजपा के हरियाणा और पंजाब में प्रदर्शन को देखते हुए भी किसान संगठन उत्साहित हैं। इन्हें लगता है कि इस आंदोलन के चलते ही हरियाणा में भाजपा को 5 ही सीट मिल पाईं और पंजाब में भी एक पर ही जीत मिली।
जबकि बीते कई चुनावों से भाजपा पंजाब में दो या तीन सीटें जीत रही थी। बता दें कि 2019 के आम चुनाव में हरियाणा की सभी 10 सीटों पर भाजपा जीती थी।
इस बार किसान संगठनों के चलते कई गांवों में तीखा विरोध दिखा था। यहां तक कि भाजपा उम्मीदवारों को प्रचार तक के लिए घर में घुसने नहीं दिया गया था।
आज अपनी आगे की रणनीति बताएंगे किसान संगठन
किसान संगठन गुरुवार को अपनी आगे की रणनीति भी बताने वाले हैं। किसान संगठनों का कहना है कि यही समय है, जब सरकार को दबाव में लाया जा सकता है।
हालांकि भाजपा नेतृत्व मानता है कि हरियाणा में कमजोर प्रदर्शन की एकमात्र वजह किसान आंदोलन ही नहीं है। जातीय समीकरण, बेरोजगारी जैसे कुछ मुद्दों ने पार्टी को नुकसान पहुंचाया है।
ऐसे में किसान संगठनों के आगे सरकार का दबाव में आना मुश्किल दिखता है। गौरतलब है कि पंजाब में 2020 से ही किसानों के आंदोलन रुक-रुक कर चल रहे हैं।
यही नहीं करीब एक साल तक तो दिल्ली की सीमाओं पर किसान डेरा डाले बैठे रहे थे, जो पीएम मोदी की अपील और तीन कृषि कानूनों की वापसी के बाद हटे थे।
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