स्थानीय मीडिया की नाराजगी भी एक कारण
लखनऊ। हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा को बड़ा झटका लगा है। उत्तर प्रदेश से पार्टी का 8 प्रतिशत वोट चोरी हो गया है। इतनी बड़ी चोरी कैसे हो गई इसकी तलाश के लिए भाजपा ने 40 टीमें गठित कीं है। वोटों की चोरी के कारण तलाशे जा रहे हैं। साथ में घर के भेदियों की भी खोज हो रही है। कहा जा रहा है कि स्थानीय मीडिया की नाराजगी भी भाजपा के लिए हार का एक बड़ा कारण रहा है। इस पर भी विचार किया जा रहा ताकि हार के लिए जिम्मेदारी तय की जा सके। पार्टी की एसटीएफ की 40 टीमें 80 लोकसभा क्षेत्रों में जांच में जुटी हैं। हार की समीक्षा में कार्यकर्ताओं का गुस्सा और गुबार फूट रहा है। ठीकरा एकदूसरे के सिर फोड़ा जा रहा है। एक ओर प्रत्याशी हार के लिए पार्टी विधायकों या स्थानीय संगठन को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। तो दूसरी ओर टास्क फोर्स की टीमों के सामने कार्यकर्ताओं का गुबार फूट रहा है। शायद इस कवायद के पीछे पार्टी की मंशा भी यही है। असल में पार्टी 2027 के बड़े लक्ष्य को साधने के लिए अपनी छोटी इकाइयों को साधने में जुट गई है। वहीं लोकल मीडिया पर भी अब ध्यान दिया जा रहा है। बताया जा रहा है कि चुनाव से पहले स्थानीय मीडिया को विज्ञापन और बयानों से दूर रखा गया था, जिसका खामियाजा भाजपा को बड़ी हार के तौर पर देखने को मिली है।
मोदी योगी से नाराजगी नहीं कार्यकर्ताओं की उपेक्षा है हार का कारण
दरअसल लोकसभा चुनाव में पार्टी कार्यकर्ताओं ने जिस तरह खामोशी की चादर ओढ़ी, उससे भाजपा को बड़ा नुकसान हुआ। सीटें 62 से घटकर 33 रह गईं और वोट शेयर 49.98 फीसदी से गिरकर 41.37 प्रतिशत पर आ गया। पार्टी में इससे बेचैनी है। यही कारण है कि समीक्षा खासतौर से पार्टी के संगठनात्मक मंडल स्तरीय इकाई को शामिल किया गया है। टास्क फोर्स की टीमों को निर्देश हैं कि मंडल अध्यक्षों और पदाधिकारियों की बात जरूर सुनी जाए। अब जांच टीम जब मंडल अध्यक्षों से बात कर रही हैं, तो उनके भीतर की नाराजगी बाहर आ रही है। सब अपने-अपने हिसाब से हार के कारण बता रहे हैं। इसमें चुनाव पूर्व सर्वे में खारिज चेहरों को भी फिर से टिकट दिए जाने की बात शामिल है। समीक्षा में सामने आ रहा है कि टिकट पाकर मोदी लहर पर सवार प्रत्याशियों खासकर रिपीट किए गए सांसदों ने चुनाव में भी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की।अधिकांश जगह कार्यकर्ताओं ने कहा कि मोदी या योगी से कोई नाराजगी नहीं है। मगर जनप्रतिनिधियों को लेकर गुस्सा है। इसके अलावा कार्यकर्ताओं की सुनवाई न होने की बात भी कही गई है। थाने-चौकियों, तहसील में सुनी नहीं जाती। सूत्रों की मानें तो कुछ कार्यकर्ताओं ने यह भी कहा कि सांसद-विधायकों के अपने काम तो नहीं रुकते, मगर कार्यकर्ता का कोई काम नहीं हो पाता। अग्निवीर को लेकर भी कई जगह युवाओं की नाराजगी की बात सामने आई है। जातीय बिखराव पर कहा कि विपक्षी गठबंधन संविधान और आरक्षण खत्म किए जाने का नेरेटिव सेट करने में सफल रहा।