इस साल दिए जाने वाले पद्मश्री पुरस्कारों का ऐलान हो गया है।
इस लिस्ट में तमाम ऐसे नाम है, जो अनसंग हीरोज हैं।
इसमें पार्बती बरुआ, जगेश्वर यादव, चामी मुर्मू, गुरविंदर सिंह, सत्यनारायण बेलेरी, दुक्खू मांझी, के चेलम्मल, संगठनकीमा, हेमचंद मांझी, यानुंग जामोह लेगो, सोमाना, सर्बेश्वर बासुमातारी, प्रेमा धनराज, उदय विश्वनाथ देशपांडे, यज्दी मानेकशा इटालिया, शांति देवी पासवान और शिवम पासवान, रतन कहार, अशोक कुमार बिश्वास, बालाकृष्णम सदानम पुथिया जैसे तमाम नाम शामिल हैं। यह वो लोग हैं, जिन्होंने जमीन पर रहते हुए अपने काम से समाज में अपनी एक अलग पहचान बनाई है।
पार्बती बरुआ, भारत की पहली महिला महावत
लिस्ट में सबसा पहला नाम पार्बती बरुआ का है, जिन्हें हाथी की परी कहा जाता है। 67 वर्षीय पार्बती असम की रहने वाली हैं और जानवरों की बेहतरी के लिए काम करती हैं।
वह भारत की पहली महिला हैं जो हाथी के महावत का काम करती हैं। उन्होंने पुरुषों के वर्चस्व वाले इस क्षेत्र में काम करके अपने लिए जगह बनाई है।
अपनी खास तकनीक से उन्होंने हाथियों के बीच संघर्ष पर लगाम लगाने में अहम भूमिका निभाई है। इस तरह से उन्होंने तीन राज्यों की मदद की है।
पार्बती ने यह गुण अपने पिता से सीख था और महज 14 साल की उम्र से ही महावत का काम करने लगी थीं। एक अच्छे परिवार से ताल्लुक रखने के बावजूद उन्होंने अपने लिए एक साधारण जीवन चुना।
जगेश्वर और चामी भी
इस लिस्ट में जगेश्वर यादव का नाम भी है, जिन्हें बिरहोर के भाई कहा जाता है। वह जशपुर के रहने वाले हैं और आदिवासी कल्याण के लिए काम करते हैं।
तमाम आर्थिक विषमताओं से जूझते हुए वह इस काम में लगे रहे। इसी तरह झारखंड की 52 साल की चामी मुर्मू भी हैं। उन्हें सेराकेला की सहयोगी कहा जाता है। चामी एक ट्राइबल वॉरियर हैं, जिन्होंने 30 लाख से ज्यादा पेड़ लगाए हैं और अपने संगठन के जरिए 30 हजार से ज्यादा महिलाओं को रोजगार उपलब्ध कराया है।
सत्यनारायण बेलेरी और दुक्खू माझी
इस लिस्ट में अगला नाम हरियाणा के 53 साल के गुरविंदर सिंह का है, जो दिव्यांगों के लिए काम करते हैं। केरल के सत्यनारायण बेलेरी भी पद्म सम्मान वालों में से एक हैं।
वह चावलों की विभिन्न किस्मों पर काम करते हैं। उन्होंने चावल की 650 से ज्यादा प्रजातियों के संरक्षण पर काम कर चुके हैं। इसी तरह पश्चिम बंगाल के दुक्खु माझी को पद्मश्री सम्मान मिला है।
दुक्खु माझी को गाझ दादा के नाम से जाना जाता है। वह पुरुलिया के सिंदरी गांव के ट्राइबल एन्वायर्नमेंटलिस्ट हैं। दुक्खु ने 5000 से ज्यादा बरगद और आम के तमाम पेड़ बंजर जमीन पर लगाए हैं।