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    Home»देश»क्या अब गांव का कचरा भी हम देखें? सुप्रीम कोर्ट की कड़ी फटकार
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    क्या अब गांव का कचरा भी हम देखें? सुप्रीम कोर्ट की कड़ी फटकार

    News DeskBy News DeskNovember 18, 2025No Comments2 Mins Read
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    क्या अब गांव का कचरा भी हम देखें? सुप्रीम कोर्ट की कड़ी फटकार
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    नई दिल्ली 
    सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को वकीलों के पहनने वाले बैंड्स से जुड़ी एक याचिका पहुंची। इसमें कहा गया था कि इस्तेमाल के बाद इन बैंड्स के निपटान के लिए एक समान व्यवस्था करने के निर्देश दिए जाएं। खास बात है कि शीर्ष न्यायालय ने याचिका पर विचार से इनकार कर दिया है। साथ ही बेंच ने यह भी सवाल उठाया है कि क्या अब रुमालों का कैसे उपयोग किया जा रहा है, इसपर भी हम नजर रखें?
     
    याचिकाकर्ता साक्षी विजय ने जनहित याचिका दाखिल की थी। उन्होंने मांग की थी कि इन बैंड्स को इकट्ठा करने और निपटान के लिए एक समान और ईको-फ्रैंडली व्यवस्था बनाई जाए। CJI यानी भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और जस्टिस विनोद चंद्रन की बेंच याचिका पर सुनवाई कर रही थी। बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, याचिका देख अदालत ने कहा, 'हमारा काम फिर कहां खत्म होगा? इसकी निगरानी करना कि रुमालों का इस्तेमाल कैसे हो रहा है? या गांव में कचरे का किया जा रहा है?… हमें रिट कहां जारी करनी चाहिए।' याचिकाकर्ता जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल में एसोसिएट प्रोफेसर हैं।

    याचिका में क्या थी मांग
    याचिकाकर्ता का कहना था कि उन्हें कोर्ट के बाहर कचरे के डिब्बे के पास, फुटपाथ के पास सिंथैटिक बैंड्स पड़े मिले थे। इसमें कहा गया है कि हालात पर्यावरण से जुड़ी चिंताओं और पेशे की गरिमा को दिखाती हैं। याचिका में इस बात पर जोर दिया गया था कि सफेद बैंड्स के सम्मान के साथ निपटान की कोई नीति नहीं है। साथ ही पर्यावरण के लिहाज से भी मौजूदा हालात पर सवाल उठाए गए थे।

    …तो 200 साल से ज्यादा समय लगेगा
    याचिका में कहा गया कि पहले के समय में वकील कॉटन के बैंड्स का इस्तेमाल करते थे, जो धुलकर दोबारा इस्तेमाल किए जा सकते थे। जबकि, मौजूदा स्थिति में बैंड्स सिंथैटिक के हैं और नॉन बायोडिग्रेडेबल हैं। ये 10 रुपये के आते हैं और कई वकील एक बार के इस्तेमाल के बाद इन्हें फेंक देते हैं। याचिका में कहा गया कि ऐसे हजारों बैंड्स रोज फेंके जा रहे हैं, जिन्हें डिकम्पोज होने में 200 साल से ज्यादा का समय लगेगा। याचिका में पर्यावरण (सुरक्षा) कानून, 1986 का हवाला दिया गया था। उनकी मांग की थी कि भारतीय बार काउंसिल और संबंधित सरकारी मंत्रालयों को बैंड डिस्पोजल बिन लगाने के निर्देश दिए जाएं।

     

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